लेखनी प्रतियोगिता -15-Mar-2022 सगाइ- एक अधूरी दास्तान
ता.15.03.2022 कहानी प्रतियोगिता ‘एक अधुरी
दास्तान’ टोपिक हेतु प्रस्तुत एक सत्यघटना
सगाइ- एक अधूरी दास्तान
“आप ये फंक्शन मत कीजीये, हम पोस्टपोन कर देते है
आप की तबियत ठीक नही है”, पूर्णिमा बहन ने कहा।
”नही पूर्णिमा, हमारा बेटा आज 18 का हो गया है,
आज तक उस का जन्मदिन मनाने का मौका नही आया है। आज मुजे बेटे को खुश देखना है।“
केशवभाइ ने कहा।
”आप ठीक से चल भी नही पा रहे और कैसे ये सब होगा,
वैसे भी ये भाडे का मकान है। केवल एक रुम है हमारे पास कैसे मेनेज होगा सब?”
पूर्णिमा ने कहा।
”हो जायेगा, सबकुछ हो जायेगा। मैने सब के यहा
जाकर खाना खाया है, आज मुजे सब को खाना खिलाने का मौका मिला है, वैसे भी राखी के
दिन एकादशी है, और एकादशी के दिन सब को खिलाना पुण्य का कार्य होता है। मेरी तबियत
को कुछ नही होगा, प्लीज मना मत करना, जय के दोस्त, मेरे सह कर्मचारी और हमारी
फेमिली को एक बार खाना खिलाने दो, एक अच्छा सा फंकशन हो जाने दो। फिर मेरी
ट्रीटमेंट भी करवा लेंगे।
केशवभाइ एक सरकारी कर्मचारी थे और तीन बेटे के
साथ भाडे के मकान मे रहते थे। उस का बडा बेटा जय राखी के दिन 18 साल का हो रहा था।
जय भी बचपन मे बडी मुश्किल से जिन्दा बचा था। दोनो पति-पत्नि ने बडी मुश्किलो से
जय को पाला था क्युकी बिमारी ऐसी थी की उसे बाहर आउट डोर खेलने, कुछ खाना खाने
जैसे ठंडी चीजे, बासी खाना, गुड, प्योर दुध वगैरह से परहेज रखना पडता था। जय बाहर
खेलने तक नही जा सकता था। इसिलिये आज 18 साल का होने के बावजुद उसे सिर्फ घर और
स्कुल दो ही रास्ते के बारे मे जानकारी थी, दुनिया के दुसरे रास्ते उसे मालुम नही
थे। बेंक, पोस्ट ओफिस जैसी लेन-देन कचेरी और दुनियादारी ये सब से जय कोशो दुर था।
जय भी मन मे तो खुश था की एक बडा फंक्शन हो रहा
है। वैसे राखी के दिन उस का जन्म हुवा था, लेकिन एक भी सगी बहन नही थी। क्युकी
केशवभाइ को तीन संतान मे केवल तीनो लडके ही थे। जय सब से बडा था। जय के जन्म के
बाद तीन साल के बाद केशवभाइ को हार्ट की प्रोब्लेम हुइ और सन 1976 मे मुम्बइ जशलोक
होस्पिटल मे उस का 14 घंटे ओपरेशन हुवा था। तब जय से छोटा भाइ केवल 4 महिने का था
और सब से छोटे भाइ का जन्म भी नही हुवा था। खैर केशवभाइ बच तो गये लेकिन आज 18 साल
के बाद फिर से हृदय चौडा हो रहा था, एक वाल्व की खराबी थी और डोक्टर ने जवाब दे
दिया था की ज्यादा साल नही बचे, क्युकी उस जमाने मे कोइ बडी टेकनोलोजी भी नही थी।
जय ने मेहसुस किया था की पापा घर पर कभी कभी चार
पैरो से, जैसे जानवर चलते है वैसे, दर्द से चलते थे, सास फुल जाती थी। जय छोटा था
और पता नही था तब तक 10 वी कक्षा मे तो वो अच्छे नम्बरो से पास हो गया था, लेकिन
अब बडा हो गया था और पापा की हालत वो नही देख पाता था, इसिलिये 12 वी मे वो 4 बार
फैल हो चुका था। बडी मुश्किल से पास हुवा और आगे का सोच रहा था की अब वो क्या
करेगा? पापा को आर्थिक मदद की भी आवश्यकता थी। लेकिन जय को कुछ ज्ञान नही था की वो
कैसे कमाइ करे।
ये साल था 1992 का जब जय 18 का हो रहा था और
जन्मदिन के फंक्शन को रोकने के लिये पापा नही माने और राखी के दिन सुबह से एक बडा
फंक्शन किया गया। लेकिन अभी आधा ही फंक्शन हुवा था और केशवभाइ को एक गेहरा हार्ट
एटेक आया और शाम तक वो जिन्दा नही बच पाये। बाद मे जय को पता चला था की पापा सब को
बोलते थे की फंक्शन की शाम हो गइ तो लम्बा जिउंगा और अगर नही रहा तो मेरे बेटा 18
का हो गया है उसी के हाथो से मेरा अग्निदाह होगा और मै सुकुन से जाउंगा।जिस हाथ से
जय को शाम को केक काटना था उसी हाथ से अपने पापा के अग्नि संस्कार किये। जय रो भी
नही पाया। लेकिन एक काम पापा अच्छा कर गये थे।
सरकारी नौकरी मे उन दिनो वारसदार को नौकरी मिल
जाती थी। जय को केवल 19 साल की उम्र मे पापा की जगह सरकारी नौकरी मिल गइ। अब वो
माता पूर्णिमाबहन और दोनो भाइ के भविष्य मे डुब गया। कोलेज कभी वो गया नही तो कभी
लडकीयो से बातचित होती नही थी। लेकिन सरकारी नौकरी होने से 19 साल की उम्र मे ही
जय के रिश्ते आने लगे। जय चुपचाप लडकी देख आता था लेकिन उसे वो जीवनसाथी की तलाश
थी जो उस की माता और घर दोनो को सम्भाले। जब की जय ने कम उम्र मे अपने ही फेमिली
मे ऐसी स्त्रीया देखी थी जिस ने फेमिली को बिखेर के रख दिया था।
आनंद मस्ती, खेल, पार्टीया, ये सबकुछ कम उम्र मे
ही जय के नसीब मे नही था। जय का जीवन केवल घर और ओफिस वही था। कभी कभी अकेले मे
उसे बहुत जोर से रोने का मन करता था, फिर वो सोचता था अभी उस की शुरुआत है जब की
उम्र के आधे पडाव मे माता की तो छत ही चल बसी थी। अगर वो हसते चेहरे से नही जीयेगा
तो माता कैसे रहेगी? एक तरफ ओफिस का सफर भी आसान नही था। पल पल और हर एक कदम पर
मुश्किले और थकान थी, क्युकी वो जुनियर था और सीनीयरो ने उसे नही छोडा था। जिन
लोगो को पापा की वजह से वो अंकल कह के पुकारता था आज वही लोग उस के उपरी अधिकारी
के रुप मे थे। जो पापा के साथ नौकरी करते वक़्त पापा हो या न हो, खुद के घर को
छौडकर पापा के साथ घर आते थे, खाना खाते थे, मस्तीया करते थे, सब की फेमिली मिलकर
छोटे प्रवास किया करते थे वही अंकल्स ने जय का दाव लेना शुरु किया था। इतना बेवकुफ
भी जय नही था। समय और परिस्थितिया देखकर वोही पापा के दोस्तो को, वोही अंकलो को जय
ने ‘सर’, ‘साहब’ कहना शुरु कर दिया। 5 साल
लगे जय को ओफिस मे सेट होने को और फिर एक दिन ऐसा भी आया जब यही अंकल्स, यही साहबो
की फौज जय के आगे घुटना टेकने लगी।
दुसरी ओर जय ने दोनो भाइओ को पढाया, माता के नाम
पर एक मकान भी बनवाया और अपने से छोटे भाइ को बीजनेस भी शुरु करवाया। लेकिन कहते
है न की घर की मुर्गी दाल बराबर। जब छोटे ने कमाना शुरु किया, यही मा जिस के लिये
जय तरसता था, उन की नही रही, अपने मझले बेटे को बडा कर दिया और हर एक मौके पर जय
का अपमान होने लगा। मानो फेमिली मे एक ऐसा नियम बना दिया गया की पापा के जाने के
बाद बडे बेटे को बैल की तरह काम करना है और बदले मे कोइ अपेक्षा नही रखनी होती है।
इसिलिये जीवन मे, समाज मे, फेमिली मे कोइ भी बात हो, निर्णय लेना हो तो अब मझला
बेटा लेता था और पैसे देना या आर्थिक बातो मे जय को आगे कर देते थे। जय ने स्वीकार
कर लिया की यही सफर है....देते रहो...पाने की अपेक्षा न रखो।
5 साल बीत गये थे नौकरी को और मझला भाइ बीजनेस की
ट्रेनिंग के लिये बेंगलोर गया हुवा था तब माता पूर्णिमाबहन की तबियत अचानक खराब हुइ,
उम्र के हिसाब से गर्भाशय मे तकलीफ हुइ थी और उसे निकालना अत्यंत आवशयक था।
जय ने कही से भी मेनेज किया और ओपरेशन सफल हुवा।
लेकिन अब बेड रेस्ट की सख्त जरुरत थी। और उसी वक़्त एक गाव की लडकी का रिश्ता आया।
जय अपने मामा के साथ देखने गया तो लडकी देखकर और खानदान देखकर बिना बात चीत किये
‘हा’ बोल दिया। बडी मिन्नतो के बाद जय के नसीब मे पहलीबार खुशिया वापस आ रही थी।
क्युकी 16 साल तक माता-पिता ने बडी लाड से जय को पाला था और बडा किया था। जय को
खुब याद था की उस की बिमारी और हालात से कभी माता-पिता हारे नही थे और जैसे काच के
बर्तन को सम्भालना पडे वैसे जय को सम्भला था। जय ने सोचा की आज वो दिन आ गया जब कोइ
अच्छे घराने की लडकी उस की धर्मपत्नी बनकर आ रही है अब वो माता और घर दोनो को
सम्भाल लेगी। स्त्रीयो की कुछ तकलीफे सिर्फ स्त्रीया ही सोच और समज सकती है। वैसे
भी जय कभी कीसी स्त्री, लडकी के परिचय मे नही था की वो कुछ स्त्रीयो के समजे।
और वो दिन आ गया जब जय की सगाइ का दिन था। जय की
और से केवल माता और मामा पहुचे और लडकी वालो को बताया गया की जय अपनी नानीमा के
बगैर शादी नही करेगा। क्युकी नानीमा को जय अपनी माता ही मानता था। और नानीमा को
दुसरे दिन फोरेन जाना था, क्युकी सब से छोटे मामा वहा थे उस के यहा नानीमा को जाना
पड रहा था। खैर ये तय हुवा की आधी सगाइ, मतलब लडकी को सगाइ मे जो समाज और कुटुंब
के रिवाज के अनुसार जो देना होता है, गेहना, कोस्मेटिक्स, कपडे, वगैरह जय के
घरवालो की ओर से दिया गया और लडकी को बिठाकर आधी सगाइ की रसम पुर्ण कर दी गइ और
बाकी की रसम तीन या छेह महिने के बाद जब नानीमा वापस आये तब करनी तय हुइ। ये आधी
सगाइ इसिलिये कर दी गइ की दोनो घर की और से ये रिश्ता पक्का हो जाये। इसिलिये जय
को साथ नही ले जाया गया था।
उस वक़्त न मोबाइल थे, लडकी के पिताजी घर मे ही
पोस्ट ओफिस चलाते थे तो प्रेम-पत्र लिखने का तो सवाल ही नही उठता था क्युकी पत्र
सब से पहले ससुर के हाथ मे जाना था। बडे बुजुर्गो की हाजरी मे जय का लडकी से मिलना
भी सम्भव नही था। बस आधी रसम निभाइ और जय के घरवाले चले आये। जब सब वापस आये तब जय
को पता चला की लडकी का नाम ‘पारुल’ था।
वैसे जय अपना कीमती समय संगीत सुन ने मे और नोवेल
पढने मे बीताना पसंद करता था। भले ही हालात अलग थे लेकिन जय दिल और मन से
रोमेन्टिक तो था ही। क्युकी रोमान्स उस के खुन मे था। पापा ने भी अपने जमाने मे एक
बार प्यार किया हुवा था और यह बात पापा ने खुद जय को बताइ थी। इसिलिये जय के घर मे
रोमान्स और प्यार की बाते खुले आम करी जा सकती थी।
दुसरे दिन नानी मा को ट्रैन से मुम्बइ जाना था और
वहा से हवाइ जहाज मे फोरेन। इसिलिये घरवालो ने सोचा की जय और पारुल एक दुसरे को कइ
महिनो तक मिलनेवाले नही है और गाव होने के नाते जय ससुराल नही जा सकता था और जब तक
सगाइ सम्पुर्ण न हो तब तक आनेवाली बहु को घर लाया नही जा सकता था। इसिलिये ये तय
हुवा की शाम को जय और उस के मामा एक भेट लेकर जाये और जय कुछ पल के लिये ही क्यु न
हो लेकिन पारुल से मिल ले। जय के मन मे लड्डु तो जरुर फुटने लगे की चलो कम से कम
घरवालो ने आज अक भले कही साथ न दिया हो इतना तो सोचा उस के बारे मे। अब खुशी सब के
सामने बया तो कर नही सकता था।
शाम को मामा के साथ बाइक पर नीकल पडा....अपनी
पारुल से मिलने...रास्ता केवल 5 कीमी का था। केवल आधा घंटा था आने जाने के लिये
फिर तो तुरंत वापस ही आना था। पिछे बैठे बैठे जय हजारो ख्वाब सजाये जा रहा था की पारुल
से कैसे मिलेगा ? क्या बाते करेगा? कैसी दिखती होगी इस वक़्त ? उस के माता-पिता
मतलब सास-ससुर के सामने पारुल से कैसे मिल पायेगा? मिल पायेगा भी या नही? और उस ने
इश्वर से बीच रास्ते ही याद कर लिया की भगवान आज तक आप ने जैसी भी लाइफ दी है,
मैने कभी शिकायत नही की है...आज कुछ चंद लम्हो की खुशिया बटौरने जा रहा हु...निराश
मत करना।
और तब तक मामा ने बाइक जय के ससुराल मे पार्क कर
दी थी। मामा-भानजे दोनो बिन बुलाये महेमान बनकर अन्दर गये, लेकिन बडे आदर-सत्कार से
दोनो का स्वागत किया गया। जय तो पारुल को रिश्ते के वक्त देखने के बाद पहलीबार घर
जा रहा था। चाय-पानी तक बडी मुश्किल से जय ने समय व्यतीत किया। उस की आखे पारुल को
ढुंढ रही थी, लेकिन वो कही नही दिख रही थी। ससुरालवालो ने आने का प्रयोजन पुछा तो
एक वडील के नाते मामा ने बातचीत की बागडौर अपने हाथ मे ले ली थी और समजाया था की
आधी सगाइ और शादी अभी बहुत दुर है। हम होनेवाली बहु के लिये भेट ले आये है...उसे
स्वीकार करे। और सामनेवाले कुछ बोले उस के पहले मामा ने बोल दिया,”जय, जा तु अंदर
जाकर खुद बहु को गीफ्ट दे आ।“
जय को मानो स्वर्ग मिल गया। कोइ कुछ बोले उस के
पहले गीफ्ट मे लपेटी हुइ खुबसुरत साडी को लेकर जय सीधा अन्दर ही पहुच गया......और
सामने दीखी...उस की स्वप्न सुन्दरी....वो मल्लिका....वो अप्सरा...वो ख्वाब जो अभी
तक अधुरा था। एक सिम्पल सा ड्रेस पहने पारुल बेड पर नजरे जुकाये बैठी हुइ थी। जय
के कदम कमरे मे पडे फिर भी पारुल ने नजरे उठाकर देखा नही। जय ने सोचा शायद शरमा
रही होगी। क्युकी गाव की गोरी थी...शर्म, संस्कार सब से ज्यादा गाव मे पाये जाते
है। वैसे जय शहरी लडका था...लेकिन लडकी से मिलने का कोइ अनुभव उस के पास भी नही
था। जय सामने बेड पर बैठ तो गया...लेकिन गला सुखा पड गया...बोलती बिलकुल बंध थी।
क्या बोलु ? क्या कहु? इस उधेडबुन मे जय फस गया था। लेकिन पारुल जो नजरे जुकाये
बैठी थी उस के सामने सम्पुर्ण लाज शरम एक ओर रखते हुए जय एक नजर से उसे देखने लगा।
कोइ ज्यादा खुबसुरत नही थी पारुल, लेकिन जय को मेहसुस हुवा की उस के फेमिली के
लिये परफेक्ट मेच है। हाइट ज्यादा नही थी, जय पारुल के मुकाबले उचाइवाला लडका था।
लेकिन इस वक़्त कोइ नकारात्मक सोच जय के मन मे नही थी। उस ने पारुल को मन भर के
देखा और सिर्फ इतना ही सोचा की इश्वर, मा के आशिर्वाद और नानी के प्यार से जो लडकी
उस की होनेवाली धर्मपत्नी के रुप मे बैठी है वो जैसी भी हो उस के लिये लक्ष्मी का
स्वरुप है। और वो खुद भी इतना स्मार्ट नही दिखता था....साधारण सा तो दिखता था।
खैर घडी के काटे भागे जा रहे थे...जय को मालुम था
चन्द मिनिट्स ही थे उस के पास। और वो समजता था की लडकी कभी सामने से नही बोल सकती।
आखिर उस ने दो मिनिट के बाद कहा, ”पारुल, आप मुजे तो पसंद हो । क्या मै आप को पसंद
तो आया हु न। ऐसा तो नही की बडो की बाते मानकर हा कह दी हो ?”
जवाब मे पारुल कुछ नही बोली, न तो उस का चेहरा
उठा। चुपचाप से बैठी रही। जय ने उस के मौन को स्वीक्रुती समज ली और आगे बोला,” मै
आप के लिये एक गीफ्ट लाया हु। देखिये आप को पसंद है की नही? मुजे अभी इस वक्त आप
की पसंद और ना-पसंद का कोइ अन्दाजा नही है। फिर भी जो मम्मी ले आइ है उसे आप के
लिये ले आया हु। इसे स्वीकार करे।“
और पारुल ने नजरे उठाइ और थोडा सा मुस्कुराकर भेट
स्वीकार कर ली। जय और पारुल की केवल दो पल के लिये नजरे मिली और उस ने फिर से नजरे
जुका ली। अब जय की बेचैनी बढ रही थी। क्या बोले ? क्या कहे? ये उस की समज मे नही आ
रहा था। फिर भी हिमत इकठ्ठी कर के इतना बोल पाया,” मै गीफ्ट लाया हु? आप मुजे कुछ
गीफ्ट नही देना चाहेगी ?”
अब पारुल ने चेहरा उठाकर देखा और बस इतना बोल
पाइ,” मै क्या दु ? अभी मेरे पास कुछ भी तो नही देने के लिये ।“
इतना तो जय भी जानता था की अचानक को इतनी जल्दबाजी
मे क्या गीफ्ट दे सकेगी? क्युकी बिन बुलाये मेहमान बनकर मामा और भानजा दोनो आये
थे। लेकिन अब तो मामा की बाहर से आवाज आ गइ,”जय, चलो देर हो रही है।“ और सच मे नानी
मा के ट्रैन का समय हो रहा था, उसे स्टेशन पर विदाइ देने भी जाना था। लेकिन जय ने
सोचा अब कब मुलाकात होगी? कब आमने सामने बैठना होगा ? कब मीठी बाते हो पायेगी ?
और आखिर मे जय ने खडे होकर बोला,” तो मै खुद ले लु गीफ्ट आप के पास से
?”
पारुल ने आश्चर्य से नजरे उठाकर जय की ओर देखा और पुछा,” मेरे पास सही
मे इस वक़्त कुछ नही है देने के लिये।“
जय,”वो आप मुज पर छोडिये, बस इतना बता दो मै आप से ले लु ?”
पारुल सोच मे पड गइ और तब तक मामा की आवाज दुसरीबार आइ,”जय चलो।“
और जय ने पारुल के सामने देखा और कहा,”इस वक़्त आप के पास एक ही चीज है
जो मै खुद ले सकता हु और आप की सहमती समजकर ले जा रहा हु।“ और उस ने बीना छुए
पारुल के होठ पर धीरे से केवल एक सेकंड के लिये अपने होठ रख दिये और कुछ डर से,
शर्म से और तेज धडकनो से पिछे देखे बीना, पारुल का क्या रीएक्शन होगा, वो क्या
सोचेगी, इस तरह उसे चुमने के बाद उस का क्या हाल हुवा होगा ?? ये सब सोचे और समजे
बगैर, अपने मामा के पास भाग आया।
पारुल तो बाहर नही आ पाइ, इसिलिये मामा और जय दोनो वापस मुड लिये। जय
खुद आश्चर्य मे था की ये उस से ये क्या और कैसे और क्यु हो गया? बस एक आवेग था,
प्यार का इजन था...हो गया। अब उस की सोच शुरु हुइ की क्या समजा होगा पारुल ने? कही
गलत तो नही समजा होगा। फिर सोचा आगे देखा जायेगा, लेकिन कम से कम इतनी शांत पत्नी
उस के नसीब मे लीखी थी जो उसे और मम्मी को सम्भालनेवाली थी। जय खुश था और नानीमा
को विदाइ देने के बाद सब लौटे तब मामा ने फेमिली के बीच जय को एक फोटो दिया....जय
ने अपने हाथ मे फोटो लिया जो पोस्टकार्ड साइज का था और वो पारुल का था। जय के मन
मे आज दुसरीबार लड्डु फुट रहे थे। मामा ने आज कमाल का काम किया था। जय ने अंदर
कांड किया था तो मामा ने बाहर बाजी मार ली थी।
और जय खुश था....मुद्दतो के बाद....बडी मिन्नतो के बाद.....बरसो के
बाद आज उस के जीवन के रेगिस्तान मे फुल खीले थे। बहुत खुश था जय और जब भी मौका
मिले वो पारुल का फोटो देख लेता था। मिलना सम्भव नही था, दुसरीबार वहा जाना सम्भव
नही था, पत्र लिखना भी सम्भव नही था। बस एक ही सहारा था ‘पारुल की फोटो’। शादी तो
बहुत दुर की बात थी, क्युकी नानीमा कम से कम 6 महिने वापस नही आनेवाली थी। जय
दुसरो को देखता था की सगाइ के बाद कैसे मिलते है, कैसे मस्ती मे दिन काटते है लोग।
लेकिन केवल वो क्षण, एक पल उस ने खुशी मे बिताया था...वो भी उसे पता नही था की
पारुल ने कैसा महेसुस किया होगा ? कोइ गलती तो नही हो गइ होगी न। लेकिन अब सोचने
से कोइ फायदा नही था...जो हो गया था...जो फीलींग्स उस समय उठी थी, जय से हो गया
था। वैसे जय ने सोचा था की अगर....मान लो अगर दुसरीबार मिलने का मौका मिले तो वो
कभी ऐसा नही करेगा। ये जवानी का जोश था शायद की हो गया था।
बस गाने सुनते सुनते जय अपनी जिन्दगी मे मस्त था,
अपने खयालो-ख्वाबो मे मस्त था। आधी तो आधी सगाइ के बावजुद जय ने अपनी ओफिस, पडोश
और दोस्तो मे मिठाइया बाटी थी..यही वहा का रिवाज था। दोस्तो को एक पार्टी के नाम
पर डीनर आयोजित किया था। और ऐसे ही खुशी मे दिन पे दिन बीत रहे थे। जय को लग रहा
था की शायद अब उस की जिन्दगी मे खुशियो की बौछार होनेवाली है। लेकिन जय को पता नही
था की कुदरत का कहर अभी बाकी था....जय की भाग्यकुंडली मे सिर्फ हारना, गवाना और
बैल की तरह काम करना ही लिखा था विधाता ने....
******
एक दिन जय ओफिस से घर आया और मम्मी ने समाचार
दिये की लडकी ठीक नही है।
जय को बडा झटका लगा और उस ने पुछा की क्या हुवा ?
तब मम्मी ने पुरी बात बताइ जो इस तरह थी:
*******
मामा को नौकरी के लिये गाव गाव जंतुनाशक दवाओ की
दुकान पर जाना पडता था और जब जब वो आसपास के गाव जाते और दुकानदार से पुछते की इस
गाव की लडकी कैसी है जिस के साथ मेरे भानजे की मंगनी हुइ है। जवाब मिलता था की वो
तो गाव का हीरा है हीरा। और मामा खुश होते थे और वापस चले आते थे। एक दिन उसी गाव जहा
जय की सगाइ हुइ थी वहा पहुचे और एक दुकानदार उस का खास दोस्त बन गया था वहा पुछा
की ये जो पारुल नाम की लडकी है वो कैसी है, खानदान कैसा है?
उस दुकानदार ने भी वही जवाब दिया की आप ने तो गाव
का हीरा चुना है। लेकिन आज मामा को ऐसा लगा की सब के सब एक ही जवाब दिये जा रहे है
की लडकी गाव का हीरा है हीरा, इस का मतलब कही कुछ ओर तो नही ?
और मामा ने अपने दोस्त को पुछा,”देख यार, ये मेरे
भानजे की लाइफ का सवाल है, उस के सर पर कोइ नही है, मेरी विधवा बहन पहले से ही
तकलीफ मे है। सच सच बता इस का सही मतलब क्या है?”
और दुकानदार ने मामा के चेहरे के सामने देखा और
कहा,” देखो मेरा नाम नही आना चाहिये तो बताता हु।“
मामा ने कहा,”प्रोमिस, लेकिन सच सच बताओ।“
दुकानदार ने कहा,”देखो खानदान अच्छा है, बाप
अच्छा है, मा भी खानदानी है, लेकिन लडकी...”
“लडकी का क्या?” मामा ने अब कुछ हैरत से पुछा।
“लडकी तुम्हारे भानजे के लिये बिलकुल ठीक नही है”
दुकानदार ने कहा।
”क्या मतलब?” मामा ने पुछ लिया।
”वो लडकी पुरे गाव मे बदनाम है भाइ, दो बच्चे के
बाप के साथ भागने वाली है और जो गाव के पीछे बंजर जमीन है वहा दोनो सरेआम मिलते भी
है, और वो दो बच्चो का बाप अपने पत्नी से तल्लाक लेनेवाला है और ये बात सारा गाव
जानता है।“ उस दुकानदार ने जैसे बोम्ब विस्फोट कर दिया।
”लेकिन मै कैसे मान लु और तु अब क्यु बता रहा है,
पहले क्यु नही बताया ?” मामा ने पुछ लिया और शक भी जाहिर कर दिया।
”क्या है की हम गाववाले है, अगर कीसी लडकी का घर
बसता है तो हम बीच मे टांग नही अडाते। और दुसरा हम सब ने ये सोचा था की सगाइ हो
जाने के बाद शायद वो लडकी सुधर जाये। लेकिन वो आज भी उस के साथ सरे आम घुमती है।
और वो लडकी हमारे गाव की है...आप लोग नही...कौन गाववाला अपने ही गाव की आबरु सरे आम
उछालेगा ? इसिलिये सच्चाइ कोइ नही बतायेगा। ये तो तुम दोस्त हो और तुम्हारी बहन और
भानजे के बारे मे सारी बाते मै जानता हु इसिलिये मैने सच्चाइ बता दी।“ उस दुकानदार
ने सच सच बता दिया।
फिर भी मामा ने बातो पर विश्वास नही करते हुवे
आखरी दलील की,”तेरे पास कोइ सबुत है जो तु कह रहा है उस का ?”
दुकानदार ने बदले मे मामा के घर के पास के एक
फोटो स्टुडियो का एड्रेस दिया और कहा,”यहा तुजे उस लडकी और उस दो बच्चो के बाप
दोनो की रंगीन तस्वीरे देखने को मिल जायेगी, क्युकी ये दोनो अक्सर वहा तस्वीरे
खीचाने चले जाते है।“
मामा बडे दुखी हृदय से वापस मुड गये और अपनी बहन
को किस मुह से बताये वोही सोचकर उस फोटो स्टुडियो वाले के पास गये और पुछा तो उसने
बोल दिया की ऐसे कीसी और लोगो को दुसरो की तस्वीरे वो नही दिखा सकते। दो तीन दिन
तक मामा आस पास के गाव के दुकानदारो से सच बात बोलते और वही सभी दुकानदार जो पहले
सच नही बोल पाते थे, अब जब मामा के पास पुरी कहानी आ चुकी थी तो वही सत्य अब सब
दोहराने लगे। मामा ने आखिर मे तय कर लिया की अब बहन को बताना पडेगा। लेकिन कैसे
ऐसा सोचकर एक दिन वो पान की दुकान पे खडे थे तो पानवाले ने बताया की एक भाइ आप से
मिलना चाहते थे।
मामा ने पुछा,”कौन है ?”
पानवाला, ”है को मुफलिस सा और पास के गाव से आया
है।“
मामा वोही गाव का नाम सुनते ही सतर्क हो गये और
समज गये की पारुल का आशिक ही होगा। कुछ ही देर मे वो आया भी और पानवाले ने बताया
की तुम जिस से मिलने आये हो वो यही भाइ है।
उस मुफलिस ने मामा को पुछा,”तुम वही हो जिस के
भानजे की सगाइ इस पारुल के साथ हुइ है?”
मामा ने हा कहा और आगे बोले,”और तुम वही हो पारुल
वाले?”
उस ने हा कहा और वो कुछ आगे बोले उस के पहले मामा
बोल उठे, ”देखो हम तो सगाइ तौड रहे है, लेकिन क्या ये सच है की तुम दोनो का चक्कर
चल रहा है?”
उस ने जब मामा के मुह से सगाइ तौडने की बात सुनी
तो वो बोला, ”अच्छा हुवा की आप ने सगाइ तौडने की बात बता दी, वरना आज मै आप का खुन
करने आया था।“ और इतना बोलकर उस ने एक छुरा भी दिखाया।
मामा हसने लगे और आगे बोला,”ये छुरा तु अपने पास
रख, तेरी कोइ औकात नही तु मुजे छु भी नही सकता, लेकिन इतना बता दे की कोइ सबुत है
तुम्हारे पास की तुम दोनो का कोइ चककर चल रहा हो।“
उस ने तुरंत अपनी जेब से अनगिनत फोटो नीकाले और
मामा को दिखाया। मामा ने देखा तरह तरह के पोज मे पारुल और वो दोनो ने फोटो खीचवाये
थे। यहा तक की जो कपडे जय की ओर से पारुल को दिये गये थे उस कपडे पहनकर भी पारुल
ने इस के साथ फोटो खीचवा ली थी। मतलब साफ था पारुल को इस सगाइ से कोइ मतलब नही था।
वो बस इस मुफलिस के अन्धे प्यार मे डुबी हुइ थी।
मामा ने फोटो देखकर वापस दिये और बोला,”देखो हम
तो सगाइ तौड रहे है, लेकिन एक बात मेरी सुन लो। ये नाजायज सम्बन्ध से तुम,
तुम्हारी बीवी बच्चे और वो नासमज पारुल तीनो की जिन्दगी बरबाद हो रही है। हो सके
तो पारुल को छोड दो। एक ब्राहमिन की लडकी को बरबाद कर के तुजे पाप लगेगा।
लेकिन उस मुफलिस ने कहा,” अरे भाइ अब आप तो
रिश्ता तौड रहे हो, मै तो अपनी बीवी को छोडकर बहुत जल्द इस को लेकर भागनेवाला हु।“
”ठीक है तुम्हारी मरजी” इतना बोलकर मामा ने चेहरा
हटा लिया लेकिन उस मुफलिस ने जाते जाते कहा,”आज तुमने, अपने और अपने भानजे की जान
बचा ली है। क्युकी हमारे बीच स्पष्टता आज नही होती तो तुम आज अभी मरते और शाम को
तुम्हारा भानजा मरता। मै तुम्हारे भानजे का एड्रेस लेकर ही नीकला था। लेकिन अब आज
से आप लोगो के साथ मेरी कोइ दुशमनी नही। और वो चला गया।
*****
मामा ने पहले फोरेन नानी से बात करी और नानी का
फोन जय की मम्मी पर आया और सारी बात बताइ। फिर तय हुवा की जय की मम्मी और मामा
दोनो जायेंग़े रिश्ता तोडने के लिये।
जब मामा और जय की मम्मी वहा गये तो पारुल की मा
ने रोना धोना शुरु किया की मेरी बेटी ऐसी नही है, उस पर जुठा आरोप लगाया गया है।
मेरी बेटी गाय है गाय।
मामा और जय की मम्मी ने पारुल के साथ घुमते हुवे
उस इन्सान का नाम, स्टुडियो के नाम और इधर उधर के सारे सबुत सुनाये। और पारुल के
पिताजी ने सिर्फ इतना कहा, ”बहनजी आप इस रिश्ते से आज से आजाद है।“
इस का मतलब साफ था की उस ने अपनी बेटी की गलती को
स्वीकार कर लिया था। क्युकी कोइ भी लडकी अपने पर लगे हुवे गलत लांछन को सह नही
सकती है और यहा पुरी बातचीत के दौरान पारुल बेशर्मो की तरह सब के सामने मुस्कुराती
हुइ खडी रही थी। जब सोने के गहने वापस पारुल की मा देने लगी तब पता चला की सगाइ के
कपडे, कोस्मिटिक्स वगैरह सब पारुल ने उस इन्सान के लिये शौख पुरे कर लिये थे, मतलब
सब का सब उपयोग कर लिया गया था। मामा और जय की मम्मी ने जब विदा ली तब भी पारुल
मुस्कुराती रही, चेहरे पर न कोइ शर्म, न कोइ संकोच और न अपने खानदान की आबरु की उसे
पडी थी। सगाइ तुटने का जरा भी अफसोस उस के चेहरे पर नही था।
खैर जय बच गया और आबरु लीलाम होते हुवे बच गइ थी।
घर, समाज, दोस्त और रिश्तेदारो के साथ ओफिस के स्टाफ ने भी जय को बोला की अच्छा
हुवा की शादी से पहले बाहर आ गया वरना शादी के बाद तेरी क्या हालत होती?
जय बाहर से सब के साथ खुशी से बात कर लेता था, लेकिन
एक गेहरी चौट उस के दिल को लग चुकी थी। उस ने पहले दिन तो एक कोने मे जाकर पिताजी
गये उस दिन भी जितना नही रोया था उतना मन भर के अपनी किस्मत पर रोया। भगवान को
गालीया दी और मन ही मन बोल उठा की अगर यही किस्मत देनी थी तो पहले प्यार ही क्यु
जगाया ? उसे उसी पल से औरत जात से नफरत हो चुकी थी। क्युकी जितनी भी औरत उस के
खानदान मे थी....बहुत कम अच्छी थी। कोइ खानदान को तोडनेवाली थी तो कोइ जीद्दी, यहा
तक की उस की कजिंन्स भी ऐसी ही थी।
कुछ ही दिनो मे जय ने अपने मन के साथ समजौता तो
कर लिया था। जीवन था, जीना ही था, अधुरे ख्वाब थे जो कभी न कभी दुसरो के लिये पुरे
करने पडते थे। आज तो वो टुट गया था...लेकिन उसे जीना था...दुसरो के लिये जीना था।
घर के लिये, मम्मी के लिये, खानदान के लिये, समाज के लिये उसे आज नही तो कल शादी
के लिये हा तो कहनी पडेगी, ये वो जानता था। इसिलिये एक कसम उस ने खा ली....
‘जब भी कोइ अच्छी लडकी के साथ रिश्ता तय होगा उस
वक़्त जय और वो आनेवाली बहु जब तक दोनो एक साथ शादी से पहले या शादी के बाद अपनी
माता कुलदेवी का आशिर्वाद न ले तब तक जय उस लडकी को मिलेगा नही....और जब तक आनेवाली
लडकी खुद जय को अपनाये नही तब तक जय के घर संतान नही होगी।‘
ये एक अधुरी दास्तान का सब से कठोर निर्णय जय ने अपनी
चुमनेवाली गलती के बदले मे अपने आप को सजा देते हुवे लिया था।
*****
दोस्तो....ये जो अधुरी दास्तान उपर लीखी है उस मे
केवल माता-पिता के नाम काल्पनिक है...बाकी जो भी नाम, घटना, शब्द, विचार, डायलोग्स
लिखे है वो सबकुछ सब का सब शत प्रतिशत सच है।
#लेखनी कहानी प्रतियोगीता के लिये
#लेखनी ता.15.03.2022 कहानी प्रतियोगिता ‘एक
अधुरी दास्तान’ टोपिक के लिये
Shrishti pandey
16-Mar-2022 07:40 PM
Nice one
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PHOENIX
16-Mar-2022 07:50 PM
Thank you
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Seema Priyadarshini sahay
16-Mar-2022 04:57 PM
बेहतरीन रचना👌👌
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PHOENIX
16-Mar-2022 06:30 PM
धन्यवाद आप का
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Punam verma
16-Mar-2022 08:51 AM
बहुत खूब
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PHOENIX
16-Mar-2022 11:58 AM
धन्यवाद
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